कुंडली मिलान भाग – 4
वश्य गुण मिलान
पिछले अंक मे हमने वर्ण मिलान के बारे मे जानकारी प्राप्त की।वर्ण मिलान के बारे मे जानकारी को लिए लिंक पर क्लिक करे ।
कुंडली मिलान की द्वितीय कूट गुना मिलान है वश्य मिलान । वश्य मिलान को 36 अंक मे से 2अंक आंवटित है।
वश्य चंद्रमा के राशि के अनुरूप होता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, प्रत्येक राशि की अपनी एक जीव प्रजाति होती है, कोई राशि मानव राशि होती है, कोई जलचर होती है, कोई चतुष्पद होता है। और हम जानते हैं कि हर जीव क्या एक अपना व्यवहार होता है जैसा कि मानव चतुर प्रजाति है उसके बाद चतुष्पद राशि का खाओ भाव और व्यवहार होता है। प्रजाति से हमें उस प्रजाति के बारे में, उस प्रजाति के व्यवहार के बारे बारे में अनुमान लगता है। ठीक इसी प्रकार वश्य जातक की शारीरिक व्यवहार का संकेत देता है। चंद्रमा हमारे मन का कारक है। हमारा शारीरिक व्यवहार मन द्वारा निर्देशित होता है।वश्य द्वारा हम वर एवं कन्या की एक दूसरे से शारीरिक नियंत्रण या सहजता का मिलान करते है। वश्य मिलान का मुख्य उद्देश्य शारीरिक व्यवहार और आपस मे संतुलन का मिलान करना है।
वर—-> कन्या : : | चतुष्पद | मानव | जलचर | वनचर | कीट |
चतुष्पद | 2 | 1 | 1 | 0 | 1 |
मानव | 1 | 2 | 0.5 | 0 | 1 |
जलचर | 1 | 0.5 | 2 | 1 | 1 |
वनचर | 0 | 0 | 1 | 2 | 0 |
कीट | 1 | 1 | 1 | 0 | 2 |
वश्य निर्धारण की विधी —
वश्य | राशि |
चतुष्पद | मेष , वृष, धनु (अंतिम आधा भाग ) |
मानव या द्विपद | मिथुन, तुला, कन्या, धनु (प्रथम आधा भाग)और कुंभ राशि |
जलचर | कर्क , मकर और मीन राशि |
कीट | वृश्चिक राशि |
वनचर | सिंह राशि |
प्रत्येक राशी की अपनी वश्य प्रकृति होती है।
मेष , वृष, धनु (अंतिम आधा भाग ) चतुष्पद राशी है।
मिथुन, तुला, कन्या, धनु (प्रथम आधा भाग)और कुंभ राशि मानव या द्विपद
राशी है।कर्क , मकर और मीन राशी जलचर राशी है।
वृश्चिक राशी को कीट राशी माना जाता है।
सिंह राशी को वनचर राशी माना जाता है।
जन्म कुण्डली मे चंद्रमा जिस राशी मे अवस्थित हो अर्थात जातक/जातिका की जन्म राशी के अनुसार दोनो को वश्य आंवटित कर इनका मिलान किया जाता है।
जैसे अगर जातक का वश्य वनचर हो तो चतुष्पद, मानव एवं कीट वनचर से सहज महसूस नहीं करेगे क्योंकि सभी वनचर के भोजन है। व्यावहारिक रुप से कहे तो वनचर उग्र प्रवृति, घमंडी प्रवृति के हो सकते है और अन्य को मानसिक संताप का कारण हो सकते है । दूसरे वश्य वाले उन्हें आसानी से नियंत्रित नहीं कर सकते है ।
अगर वश्य चतुष्पद हो तो जातक मे कुछ जिद्दीपन या अड़ियलपन हो सकता है। चतुष्पद सबसे अधिक सहज चतुष्पद के साथ महसूस करते है। लेकिन चतुष्पद मानव और कीट साथ भी समायोजित हो सकते है । किन्तु वे वनचर से असहज महसूस करते है।
मानव वश्य मानव के साथ सबसे सहज महसूस करते है।लेकिन वे एक चतुष्पद और कीट के साथ समायोजित हो सकते है । मानव वश्य वाले जातक व्यवाहारिक हो सकते है । मानव वश्य वाले जलचर साथ भी समायोजित करने का प्रयास करते है।
जलचर वश्य वाले भावुक और धैर्यवान होते है। जलचर वश्य जलचर के साथ सबसे ज्यादा सहज महसूस करते है। लेकिन चतुष्पद के साथ समायोजित हो सकते है। यह भी वनचर और कीट साथ और कुछ हद तक मानव के साथ भी समायोजित होने का प्रयास करते है।
कीट वश्य वाले जातक भावुक के साथ ही उग्र होते है। कीट वश्य कीट के साथ सहज महसूस करते है। वनचर, चतुष्पद और मानव के साथ समायोजित होने का प्रयास करते है ।
यदि जातक चतुष्पद वश्य हो
क)जातिका चतुष्पद वश्य हो तो 2अंक
ख)जातिका मानव वश्य हो तो 1अंक
ग) जातिका जलचर वश्य हो तो 1अंक
घ) जातिका वनचर वश्य हो तो 0 अंक
ड़) जातिका कीट वश्य हो तो 1 अंक
यदि जातक मानव वश्य हो
क)जातिका चतुष्पद वश्य हो तो 1अंक
ख)जातिका मानव वश्य हो तो 2अंक
ग) जातिका जलचर वश्य हो तो 0.5अंक
घ) जातिका वनचर वश्य हो तो 0 अंक
ड़) जातिका कीट वश्य हो तो 1अंक
यदि जातक जलचर वश्य हो
क)जातिका चतुष्पद वश्य हो तो 1 अंक
ख)जातिका मानव वश्य हो तो 0.5 अंक
ग) जातिका जलचर वश्य हो तो 2अंक
घ) जातिका वनचर वश्य हो तो 1 अंक
ड़) जातिका कीट वश्य हो तो 1 अंक
यदि जातक वनचर वश्य हो
क)जातिका चतुष्पद वश्य हो तो 0 अंक
ख)जातिका मानव वश्य हो तो 0 अंक
ग) जातिका जलचर वश्य हो तो 1 अंक
घ) जातिका वनचर वश्य हो तो 2 अंक
ड़) जातिका कीट वश्य हो तो 0 अंक
यदि जातक कीट वश्य हो
क)जातिका चतुष्पद वश्य हो तो 1 अंक
ख)जातिका मानव वश्य हो तो 1अंक
ग) जातिका जलचर वश्य हो तो 1 अंक
घ) जातिका वनचर वश्य हो तो 0 अंक
ड़) जातिका कीट वश्य हो तो 2 अंक
अगले अंक मे हम तारा मिलान के बारे मे जानकारी प्राप्त करेगे ।