कुंडली के विभिन्न भागों में उपकेतु का प्रभाव

कुंडली के विभिन्न भागों में उपकेतु का प्रभाव

उपकेतु का परिचय

पुच्छल तारा, इसके बारे में हममें से प्रत्येक व्यक्ति जानता होगा। ऐसा संभव है बहुतों ने ना देखा हो, लेकिन नाम तो सुना ही होगा। पुच्छल तारे आसमान में बहुत ही सुंदर दिखता है। उप केतु को इसी पुच्छल तारा या धूमकेतु का पिछला हिस्सा माना जाता है। जैसा कि हमने पहले पढ़ा था, पुच्छल तारा के अग्र भाग को धूम कहते और इसके पिछले हिस्से को उपकेतु कहा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जब आसमान में पुच्छल तारा या धूमकेतु नजर आता है तो संसार में किसी प्रकार की कोई बड़ी और बुरी दुर्घटना संभव होती है। अतः कुंडली के जिस भाव में उपकेतु बैठा हो उस भाव से संबंधित फलों का जातक को नुकसान उठाना पड़ता है। उपकेतु के कारण ऊंचाई से गिरने, चोट लगने, जीवन में परेशानी और आसमानी बिजली के कारण खतरा की संभावना होती है

कुंडली के विभिन्न भावों में उपकेतु का प्रभाव

1) प्रथम भाव में स्थित केतु के कारण जातक सभी प्रकार के विद्या में निपुण होता है जातक वाक् कला निपुण होता है। वह सुखी जीवन व्यतीत करता है। वह सभी का प्रिय व्यक्ति होगा। जातक की सारी इच्छाएं पूर्ण होंगी।

2) द्वितीय भाव में स्थित उप केतु के कारण जातक वाग्कुशल, मधुर वचन बोलने वाला और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक होता है। जातक एक अच्छा लेखक हो सकता है। जातक सम्माननीय और विद्वान व्यक्ति होगा। जातक को वाहन का सुख प्राप्त होगा। जातक प्रसन्न चित्त रहने वाला व्यक्ति होगा।

3) कुंडली के तृतीय भाव में उपकेतु के कारण जातक संकुचित विचारों वाला और छोटा दिल वाला व्यक्ति होता है। जातक क्रुर और नीच कर्मों में लिप्त होता है। जातक दुबला पतला शारीरिक बनावट वाला व्यक्ति होता है। जातक फाइनेंसियल स्थिति अच्छी नहीं होती है। जातक ऐसे रोगों से पीड़ित होता है जो तीव्र गति से जातक पर प्रभाव डालते हैं।

4) कुंडली के चतुर्थ भाव में उपकेतु के कारण जातक को संसार के सारे प्रकार के सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। जातक भाग्यशाली होता है। जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाला और गुणवान व्यक्ति होता है। जातक सात्विक विचारों वाला व्यक्ति होता है। जातक वेद और श्रुति में जिज्ञासा रखता है।

5) कुंडली के पंचम भाव में उपकेतु के कारण जातक संसार के भौतिकवादी सुखों का आनंद उठाता है। जातक को कला की अच्छी जानकारी होती है। जातक बुद्धिमान व्यक्ति होता है और वह ट्रिक्स में निपुण होता है। जातक बोलने में उत्तम होता है। जातक गुरु भक्ति का मान रखता है।

6) कुंडली के छठे भाव में स्थित उपकेतु के कारण अपने मामा घर के लोगों के लिए बुरा प्रभाव लेकर आता है। जातक अपने शत्रु साथ ही, अपने रिश्तेदारों का विनाश कर देता है। जातक बहादुर और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक होता है। जातक तीक्ष्ण बुद्धि व्यक्ति होता है।

7) कुंडली के सप्तम भाव में स्थित उपकेतु के कारण जातक सट्टाबाज होता है। जातक कामुक प्रवृत्ति का होता है। जातक भौतिकवाद संसारिक सुखों की ओर आकर्षित होता है। जातक नीच प्रवृत्ति की स्त्री के साथ दोस्ती रखता है।

8) अष्टम भाव में स्थित केतु के कारण जातक नीच कर्मों में लिप्त होता है। जातक नीच विचारों वाला और बेशर्म प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है। जातक क्रिटिसाइजर होता है। जातक को स्त्री का सुख नहीं प्राप्त होता है। जातक अपने शत्रु से घिरा रहता है और परेशान रहता है।

9) नवम भाव में स्थित उपकेतु के कारण जातक धार्मिक चिन्हों को धारण करता है। जातक सभी के सुखों की कामना करता है और “वसुधैव कुटुंबकम्” और “सर्वे भवंतू सुखिना:” की कामना करने वाला व्यक्ति होता है। जातक धार्मिक क्रियाकलापों में निपुण होता है और जातक सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

10)दशम भाव में स्थित उप केतु के कारण जातक भाग्यशाली होता है और संसार के सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करता है। जातक की स्त्रियों का प्रिय होता है और हमेशा ज्ञानी और जानकार व्यक्तियों से घिरा रहता है।

11) कुंडली के एकादश भाव में स्थित केतु के कारण जातक हमेशा लाभ प्राप्त करता है। जातक धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति होता है। जातक समाज में एक आदरणीय व्यक्ति होता है। जातक धनी होता है। जातक भाग्यशाली और बहादुर व्यक्ति होता है। जातक धार्मिक क्रियाकलापों को बड़े स्तर पर करेगा जातक विद्वान होता है।

12)कुंडली के द्वादश भाव में स्थित उपकेतु के कारण जातक पापी और नीच कर्मों की ओर आकर्षित होता है। जातक क्रूर प्रवृत्ति का होगा और उसमें मानवता का कोई नामोनिशान ना होगा। जातक बहादुर होगा। जातक गर्म मिजाज का व्यक्ति होगा। जातक कामुक प्रवृत्ति का व्यक्ति होगा और दूसरों की स्त्रियों पर नजर रखने वाला व्यक्ति होगा।

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