कुंडली के तृतीय भाव में अष्टमेश का प्रभाव

कुंडली के तृतीय भाव में अष्टमेश का प्रभाव

1) कुंडली के तृतीय भाव में अष्टमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम तृतीय भाव और अष्टम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से अष्टम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का अष्टम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) तृतीय भाव एक उपचय भाव होता है। अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब यह अष्टम भाव के नैसर्गिक कारकत्व में वृद्धि करता है। तृतीय भाव अष्टम भाव का भावत भावम भाव भी है, अतः अष्टम भाव को नैसर्गिक बल भी प्राप्त होता है। अष्टम भाव आयु का कारक होता है, अतः जातक को दीर्घायु बनाता है। लेकिन अष्टम भाव जीवन के विभिन्न प्रकार के बाधाओं का भी कारक होता है। अतः जातक का जीवन संघर्ष पूर्ण होगा और विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

3) तृतीय भाव भाइयों का कारक भाव होता है। अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो, जो कि तृतीय भाव से छठे भाव का स्वामी है, तब यह तृतीय भाव के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। यह तृतीय भाव के कारकत्व में हानि की संभावना को दर्शाता है, अतः जातक को अपने भाइयों से सुख की प्राप्ति नहीं होती है। जातक और जातक के भाइयों के मध्य मतभेद या विवाद की संभावना होती है। जातक और जातक के भाइयों के बीच कानूनी समस्या या प्रॉपर्टी के लिए को लेकर विवाद की भी संभावना होती है। जातक और जातक के भाइयों के मध्य शत्रुता भी हो सकती है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक के भाई होने की संभावना कम होती है। जातक के छोटे भाई का जीवन सुगम नहीं होगा और उसे विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक अपने भाई की कमाई पर जीवन यापन करता है।

4) तृतीय भाव जातक के शारीरिक और मानसिक क्षमता का कारक भाव होता है। अष्टम भाव जातक के जीवन में छिपे हुए भय और काल्पनिक भय का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक की शारीरिक और मानसिक क्षमता अच्छी नहीं होती है। जातक काल्पनिक भय से पीड़ित रह सकता है। जातक मानसिक प्रताड़ना का सामना कर सकता है।

5) तृतीय भाव कान और बाजु का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तो जातक को हाथों और कान से संबंधित समस्या हो सकती है। यदि जातक की कुंडली में तृतीय भाव बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक को सुनने में समस्या हो सकती है। कभी-कभी जातक को बोलने में भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

6) तृतीय भाव जातक के अधीन कार्य कर रहे कर्मचारियों का भी कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक को अपने कर्मचारियों से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जातक को अपने पड़ोसियों से भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

7) तृतीय भाव जातक की कुंडली में शुक्राणु या अंडाणु का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक के शुक्राणुओं में कमी की संभावना होती है। जातक कामुक प्रवृत्ति का होता है। जातक को संतान होने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

8) तृतीय भाव जातक के पिता के लिए मारक भाव होता है। अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव से द्वादश भाव भी होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब यह जातक के पेरेंट्स के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है। जातक के पिता को गंभीर रोग होने की संभावना होती है। जातक के पिता की जल्दी मृत्यु होने की भी संभावना होती है।

9)अष्टम भाव का स्वामी तृतीय भाव के स्वामी के साथ तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक दीर्घायु होता है। लेकिन जातक में मानसिक और शारीरिक क्षमता अच्छी नहीं होती है। जातक लेखन या बुक पब्लिकेशन इत्यादि से अच्छा पैसा कमा सकता है। साथ ही यह जातक की कुंडली में विपरीत राजयोग भी बनाता है।

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