कुंडली के नवम भाव में अष्टमेश का प्रभाव

कुंडली के नवम भाव में अष्टमेश का प्रभाव

1)कुंडली के नवम भाव में अष्टमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम अष्टम भाव और नवम भाव के नैसर्गिक कार्य के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से द्वितीय स्थान में स्थित है अतः प्रथम भाव के स्वामी का द्वितीय भाव में क्या फल होता है हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) अष्टम भाव और नवम भाव एक दूसरे से द्वि द्वादश रिलेशनशिप या संबंध बनाते हैं, जो कि शुभ संबंध नहीं माना जाता है। साथ ही अष्टम भाव एक दु:स्थान है और दु:स्थान का स्वामी कुंडली के सबसे शुभ स्थान में बैठा है, जो कि एक उत्तम स्थिति नहीं मानी जा सकती है। अतः अष्टम भाव का स्वामी का नवम भाव में स्थित होना जातक के जीवन में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का कारण बनता है। साथ ही यह कुंडली के शुभ फल देने में भी बाधा उत्पन्न करता है।

3) नवम भाव पिता से संबंधित होता है। अष्टम भाव नवम भाव से द्वादश स्थान होता है। अतः अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब यह जातक के पिता के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। जातक के पिता का स्वास्थ्य उत्तम नहीं होता है। साथ ही यह जातक के पिता की आयु को भी प्रभावित करता है। जातक के पिता शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते हैं तथा बारंबार बीमार पड़ सकते हैं। जातक के पिता के अस्वभाविक मृत्यु का भी कारण बन सकता है। जातक अपने पिता से अलगाव या मतभेद का सामना कर सकता है। अर्थात जातक के अपने पिता से उत्तम संबंध नहीं होते हैं। जातक के पिता गुप्त कार्यों या अनैतिक कार्यों में लिप्त हो सकते हैं। जातक अपने पैतृक संपत्ति को भी प्राप्त करने में विभिन्न प्रकार की बाधा का सामना करता है।

4)नवम भाव धर्म का कारक स्थान होता है। अष्टम भाव नवम भाव से द्वादश भाव होता है अर्थात अष्टमेश नवम भाव में धर्म के हानि का कारक हो सकता है। जातक को अपने धर्म पर गहरी आस्था नहीं होगी। जातक अपने धर्म का अपमान करेगा या बारंबार आलोचना करेगा। जातक अपने धर्म के स्थान पर दूसरे धर्म को अपना सकता है या उसका पालन कर सकता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक को अपने धर्म के बारे में बहुत ही गहरी और गूढ़ रहस्य की जानकारी होती है। जातक अपने धार्मिक आस्थाओं को बदलाव लाने की चाहत रखता है, क्योंकि उसे अपनी आस्था के पीछे के रहस्य का गहरा ज्ञान होता है। साधारण अर्थ यह है कि जातक अंधविश्वासी नहीं होता है और किसी भी परंपरा के पीछे के मर्म का उसे अच्छा ज्ञान होता है।

5) नवम भाव भाग्य का कारक भाव होता है। अष्टम भाव दुर्भाग्य का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक को अपने भाग्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। जातक का जीवन संघर्ष पूर्ण होता है और विभिन्न प्रकार के अचानक से होने वाले घटनाओं से भरपूर होता है। जातक अपने जीवन की उतार-चढ़ाव से परेशान रहता है। कई बार जातक अपने अवसरों को छोड़ देता है या अपने पास आने वाले अवसरों का फायदा नहीं उठा पाता है। यदि नवम भाव अष्टम भाव के स्वामी के कारण बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक का जीवन विभिन्न प्रकार की परेशानियों से भरा होता है।

6)अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक के संस्कार उत्तम नहीं होते हैं। जातक कामुक प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है। जातक के अपने पत्नी से विवाद हो सकता है या उत्तम संबंध नहीं हो सकता है। जातक या जातक की पत्नी का चरित्र संदेह के घेरे में हो सकता है। जातक को संतान उत्पत्ति में भी समस्या हो सकती है।

7) अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक को गुप्त स्त्रोत से धन अर्जन की संभावना होती है, जैसे कि जुआ, सट्टेबाजी इत्यादि। जातक अनैतिक कार्यों से भी धन अर्जन करने में लगा सकता है। जातक दूसरों के धन पर अपनी दृष्टि रखता है तथा उसे प्राप्त करने में प्रयासरत रहता है। जातक भ्रष्टाचार के द्वारा भी धन अर्जित कर सकता है। यदि नवम भाव अष्टमेश के कारण पीड़ित हो तब जातक गरीबी का सामना कर सकता है।

8)यदि अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो और शुभ स्थिति में हो तब जातक को अंतर्ज्ञान की अद्भुत क्षमता होती है। जातक को छुपी हुई चीजों या छुपी हुई बातों के बारे में पता चल जाता है। जातक अपने सीक्रेट ज्ञान और पावर से धन अर्जित कर सकता है। जातक को रिसर्च से संबंधित स्टडी का भी अवसर प्राप्त होता है।

9) जब अष्टम भाव का स्वामी नवम भाव के स्वामी के साथ नवम भाव में स्थित हो तब फल पूरी तरह नवम भाव के बल पर निर्भर करता है। यदि नवम भाव शुभ स्थिति में हो और अष्टम भाव भी शुभ स्थिति में हो तब उत्तम फल की आशा की जा सकती है। जातक अपने पिता से अच्छे संबंध रखता है परंतु जातक के पिता जातक से अलग स्थान पर निवास कर सकते हैं। जातक को उत्तम ज्ञान की प्राप्ति होती है और धर्म के बारे में गहरी जानकारी होती है। यदि नवम भाव का स्वामी शुभ स्थिति में ना हो और अष्टमेश बली हो तब यह जातक आपके पिता की आयु को बुरी तरह प्रभावित करता है। जातक के अपने पिता से गहरे मतभेद हो सकते हैं। जातक का की आर्थिक स्थिति भी उत्तम नहीं होती है। जातक नास्तिक हो सकते हैं या अपने गुरु का आदर नहीं करता है।

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